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पा॒हि नो॑ऽ अग्न॒ऽ एक॑या पा॒ह्यु᳕त द्वि॒तीय॑या। पा॒हि गी॒र्भि॑स्ति॒सृभि॑रूर्जां पते पा॒हि च॑त॒सृभि॑र्वसो ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पा॒हि। नः॒। अ॒ग्ने॒। एक॑या। पा॒हि। उ॒त। द्वि॒तीय॑या। पा॒हि। गी॒र्भिरिति॑ गीः॒ऽभिः। ति॒सृभि॒रिति॑ ति॒सृऽभिः॑। ऊ॒र्जा॒म्। प॒ते॒। पा॒हि। च॒त॒सृभि॒रिति॑ चत॒सृऽभिः॑। व॒सो॒ इति॑ वसो ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्त धर्मात्मा जन क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वसो) सुन्दर वास देने हारे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी विद्वन् ! आप (एकया) उत्तम शिक्षा से (नः) हमारी (पाहि) रक्षा कीजिये, (द्वितीयया) दूसरी अध्यापन क्रिया से (पाहि) रक्षा कीजिये, (तिसृभिः) कर्म, उपासना, ज्ञान की जतानेवाली तीन (गीर्भिः) वाणियों से (पाहि) रक्षा कीजिये। हे (ऊर्जाम्) बलों के (पते) रक्षक ! आप हमारी (चतसृभिः) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनका विज्ञान करानेवाली चार प्रकार की वाणी से (उत) भी (पाहि) रक्षा कीजिये ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - सत्यवादी, धर्मात्मा, आप्तजन उपदेश करने और पढ़ाने से भिन्न किसी साधन को मनुष्य का कल्याणकारक नहीं जानते। इससे नित्यप्रति अज्ञानियों पर कृपा कर सदा उपदेश करते और पढ़ाते हैं ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्ताः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(पाहि) रक्ष (नः) अस्मान् (अग्ने) पावकवद्विद्वन् (एकया) सुशिक्षया (पाहि) (उत) अपि (द्वितीयया) अध्यापनक्रियया (पाहि) (गीर्भिः) वाग्भिः (तिसृभिः) कर्मोपासनाज्ञानज्ञापिकाभिः (ऊर्जाम्) बलानाम् (पते) पालक (पाहि) (चतसृभिः) धर्मार्थकाममोक्षविज्ञापिकाभिः (वसो) सुवासप्रद ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वसो अग्ने ! त्वमेकया नोऽस्मान् पाहि, द्वितीयया पाहि, तिसृभिर्गीर्भिः पाहि। हे ऊर्जां पते ! त्वं नोऽस्मान् चतसृभिरुत पाहि ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - आप्ता नान्यदुपदेशादध्यापनाद्वा मनुष्यकल्याणकरं विजानन्ति। अतोऽहर्निशमज्ञानिनामनुकम्प्य सदोपदिशन्त्यध्यापयन्ति च ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सत्यवादी, धर्मात्मा, आप्त लोक हे उपदेश व अध्यापक या व्यतिरिक्त माणसांचे कल्याण करणारे कोणतेही साधन मानत नाहीत. त्यामुळे विद्वान लोक नेहमी अज्ञानी माणसांवर कृपा करतात व त्यांना उपदेश करतात आणि शिकवितात.